
मुनि श्री प्रमाणसागर जी के प्रवचनांश
एक बार की बात है, एक गुरु अपने शिष्यों को अध्ययन पूरा कराने के बाद सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने सभी शिष्यों को अन्तिम सीख देने के लिए अपने पास बुलाया। उन्होंने सभी से कुछ टमाटर लाने के लिए कहा। सब शिष्य टमाटर लेकर कर आ गये। अब गुरु ने उनसे बोला कि याद करो, तुम्हारे मन में किन-किन के प्रति इर्ष्या है। जिन-जिन के प्रति ईर्ष्या है, उन सबके नाम इन टमाटरों पर लिख दो। शिष्यों को गुरु जी की बात थोड़ी अटपटी लगी, लेकिन फिर भी गुरु की बात तो सबको माननी ही थी।
सब शिष्यों ने जिन-जिन से ईर्ष्या थी, उनके नाम टमाटरों पर लिख दिए। अब गुरु ने कहा कि इन टमाटरों को हमेशा अपने साथ रखना। सभी शिष्यों ने ऐसा ही किया। लेकिन एक-दो दिन बाद टमाटरों से बदबू आना शुरू हो गई। टमाटर सड़ने लग गये। जब शिष्य बदबू नहीं सह सके, तो सब के सब गुरु के पास पहुँच गये। वे सभी बोले कि गुरुदेव यह आपने हमसे क्या करने को बोला है? इन टमाटरों का क्या करना है? इनको साथ रखने से तो बड़ी बदबू हो रही है, घुटन हो रही है, हम इन्हें अपने साथ क्यों रखें?
गुरू जी ने कहा- बस यही हमारी सीख है, जो मैं आप सभी को देना चाहता था। जैसे इन टमाटरों पर उन लोगों के नाम लिखने से, जिनसे तुम्हारे मन में ईर्ष्या है, तुम्हें घुटन की अनुभूति हो रही है। वैसे ही अपने चित्त में उन लोगों का नाम चिपका कर रखोगे, तो जीवन भर घुटन होगी। अगर अपने आप को घुटन से मुक्त रखना चाहते हो, तो ईर्ष्या के भाव को छोड़ो। यह अन्दर से घुटन देने वाली है, तकलीफ देने वाली है, परेशान करने वाली प्रवृति है। इस प्रवृत्ति से जब मुक्त हो जाओगे, तो अपने जीवन को सफलतम बना पाओगे।